Diwali 2024 - Ayodhya me Ramlala ki pehli Diwali

अयोध्या मनाएंगी रामलला के साथ पहली दिवाली

अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद इस बार की दिवाली बेहद भव्य और दिव्य होने जा रही है. दुनिया भर में अपनी पहचान बना चुका अयोध्या का दीपोत्सव इस बार रिकॉर्ड बनाने की तैयारी में है. इस बार भगवान राम के अभिषेक के बाद रिकार्ड स्तर पर रामनगरी में दीप जलाए जाएंगे।

Ayodhya me Ramlala ki pehli Diwali

रामनगरी अयोध्या में छोटी दीपावली 30 अक्टूबर को मनायी जाएगी, हिंदू पंचांग के मुताबिक दीपावली का पर्व प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है. इस बार कार्तिक माह की अमावस्या तिथि की शुरुआत 31 अक्टूबर दोपहर 3:52 पर शुरू हो रही है जिसका समापन 1 नवंबर को शाम 5:30 पर होगा. इस वर्ष दीपावली दिव्यता के साथ मनाई जाएगी. जिस उत्साह के साथ त्रेता युग में प्रभु राम के अयोध्या आगमन में दीपावली मनाई गई थी. वैसे ही इस वर्ष भी मनाई जाएगी. मथुरा और काशी में दीपावली 31 अक्टूबर को मनाई जाएगी तो अयोध्या में एक नवंबर को मनाई जाएगी.

Ayodhya me Ramlala ki pehli Diwali

भगवान राम को टेंट से उनके भव्य मंदिर (Ram Mandir) विराजमान होने में 500 साल का समय लगा. इस दौरान आंदोलन हुए. साधु संतो से लेकर आम कारसेवक अपने आराध्य के लिए लड़ाई लड़ते रहे. आखिरकार इस आंदोलन को परिणति मिली 22 जनवरी 2023 को जब श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा भव्य मंदिर में हुई और रामलला विराजमान अपने भाइयों संग मंदिर पहुंच गए.

500 साल पहले मस्जिद बनने के साथ शुरू हुई लड़ाई

राम मंदिर के लिए लड़ाई की कहानी लगभग 500 साल पुरानी है. लेकिन कानूनी लड़ाई लड़ने का इतिहास 134 साल पुराना है. इतिहासकारों के अनुसार सन 1526 में बाबर भारत आया था. इसके दो साल बाद 1528 में बाबर के सिपहसालार मीरबाकी ने अयोध्या में एक मस्जिद बनवाई. इस मस्जिद को उसी जगह बनवाया गया, जहां भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था. बताया जा रहा है कि मीरबाकी ने इसे बाबरी मस्जिद नाम दिया. लगभग 330 साल तक चले मुगल राज में मंदिर को लेकर हिंदू शांत रहे. जब अंग्रेज भारत आए और मुगलों का वर्चस्व खत्म होने लगा तब, हिंदुओं ने मुखर होना शुरू किया. वह खुलकर कहने लगे की भगवान राम के मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई. इसी के साथ ही श्रीराम जन्मभूमि को वापस लेने के आंदोलन ने आकार लेना शुरू किया.

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1858 पूजा शुरू होने पर हुई थी एफआईआर

इतिहासकार बताते हैं कि सन् 1858 में राम जन्मभूमि परिसर हवन पूजन की शुरुआत की गई. इस पर एक एफआईआर दर्ज करा दी गई. इसी के साथ राम जन्मभूमि आंदोलन को वापस लेने के आंदोलन का पहला दस्तावेजीकरण हो गया. इस एफआईआर के बाद राम जन्मभूमि परिसर में हिंदुओं और मुस्लिमों के लिए अलग-अलग पूजा और नमाज की व्यवस्था की गई. साथ ही विवादित स्थल पर बाड़बंदी भी की गई. इस प्रकरण के बाद 1885 में श्रीराम जन्मभूमि वापस लेने की लड़ाई कोर्ट पहुंच गई. निर्मोही अखाड़े के महंत रघुबर दास ने फैजाबाद कोर्ट में एक मुकदमा दायर करके जन्मभूमि के स्वामित्व पर हक जताया. मंहत रघुबर दास ने विवादित स्थल के बाहरी आंगन में स्थित राम चबूतरे पर अस्थायी मंदिर को पक्का करने और छत डालने की अनुमति मांगी. इस पर कोर्ट ने मंदिर को पक्का करने और छत डालने की अनुमति नहीं दी. ये वो काल था जब अंग्रेज भारत की हुकूमत में प्रभावी हो गए थे.

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आजादी के बाद आया नया मोड़

दस्तावेजों की मानें तो भारत के आजाद होने के बाद 1949 में 22 दिसंबर को विवादित ढांचे के गुंबद के नीचे रामलला की मूर्ति प्रकट हुई. इस मूर्ति के होने जानकारी सपने में एक सिपाही को हुई थी. जब वहां खोदाई हुई तो रामलाल की मूर्ति मिली. इसके बाद हिंदू महासभा ने 16 जनवरी 1950 को फैजाबाद सिविल कोर्ट में विवादित ढांचे के अंदर स्थित रामलला की मूर्ति की पूजा करने की अनुमति मांगी. इसके बाद 5 दिसंबर 1950 को महंत रामचंद्र परमहंस ने भी पूजा की अनुमति देने का वाद दाखिल किया. साथ ही मुस्लिम पक्ष को पूजा में बाधा न पहुंचाने की व्यवस्था करने की मांग की गई. 3 मार्च 1951 को कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को पूजा में बाधा न डालने के आदेश दिए.

निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड भी कानूनी लड़ाई में कूदा

17 दिसंबर 1959 को रामानंद संप्रदाय की तरफ से निर्मोही अखाड़े के छह लोगों ने राम जन्मभूमि के स्थान पर दावाकर दिया. साथ ही तत्कालीन रिसीवर को हटाकर पूजा करने की अनुमति भी मांगी गई. इसी बीच 18 दिसंबर 1961 को केंद्रीय सुन्नी वक्फ बोर्ड इस लड़ाई में कूद पड़ा. उसने जगह को मुस्लिमों की बताते हुए वापस देने और मूर्तियां हटाने की मांग की. इसके बाद पूरी लड़ाई न्यायालय में खिंचती रही. लेकिन 1982 में अचानक राम जन्मभूमि को वापस लेने के मामले में विश्व हिंदू परिषद के कूदने से नया मोड़ आ गया. विहिप ने अयोध्या, काशी और मथुरा में मस्जिदों के निर्माण को लेकर अभियान चलाने का एलान कर दिया. इसके बाद 8 अप्रैल 1982 को राम जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए आंदोलन की रूपरेखा तय कर दी.

ताला खोलने और पूजा के अधिकार से मिली बड़ी जीत

राम मंदिर आंदोलन में एक बड़ा क्रांतिकार फैसला विवादित परिसर का ताला खोलने को लेकर आया. 1 फरवरी 1986 को फैजाबाद के जिला जज केएम पांडेय ने स्थानीय एडवोकेट के प्रार्थना पत्र पर विवादित स्थल का ताला खोलने का आदेश दे दिया. इसके खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील दाखिल की गई लेकिन उसे खारिज कर दिया गया. इस दौरान वहां हिंदू पूजा अर्चना करते रहे. 1989 में राम जन्मभूमि आंदोलन को कुंभ से धार मिली. जब मंदिर निर्माण के लिए संतों ने शिला पूजन कराने की घोषणा कर दी. 9 नवंबर को 1989 को मंदिर के शिलान्यास की भी घोषणा की गई. तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मंदिर के शिलान्यास की इजाजत दी. इसके बाद मंदिर का शिलान्यास का आयोजन हुआ.

आडवणी की रथयात्रा से आंदोलन को मिली धार

राम जन्मभूमि को वापस लेने के आंदोलन को धार 1990 में लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा से मिली. सितंबर महीने में लालकृष्ण आडवाणी अपनी रथयात्रा लेकर निकले, लेकिन उसे बिहार में रोक लिया गया और आडवाणी गिरफ्तार कर लिए गए. इससे देश में भूचाल आ गया. केंद्र में बीजेपी के सहयोग से बनी जनता दल की सरकार गिर गई. युवा तुर्क कहलाए जाने वाले चंद्रशेखर कांग्रेस की मदद से प्रधानमंत्री बने. लेकिन ये सरकार ज्यादा दिन तक नहीं टिकी और गिर गई. नए चुनाव के बाद केंद्र की सत्ता में एक बार फिर कांग्रेस काबिज हो गई.

ढांचा गिरा और बीजेपी सरकार भी

इस बीच यूपी में बीजेपी की सरकार बनी. मुख्यमंत्री बने कल्याण सिंह. 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने अयोध्या पहुंचकर विवादित स्थल पर बने ढांचे को गिरा दिया. इसी के साथ वहां रामलाल की पूजा अर्चना शुरू कर दी गई. अचानक हुए इस घटनाक्रम से केंद्र की कांग्रेस सरकार ने यूपी सरकार को बर्खास्त कर दिया. यह पूरा वर्ष काफी हंगामे भरा रहा. ढांचा गिरने बाद सांप्रदायिक दंगे हुए. कई लोगों की मौत हुई. हजारों लोगों पर एफआईआर हुई. अयोध्या में कर्फ्यू लगा दिया गया. इसी दौरान हिंदू पक्ष के वकील हरिशंकर जैन ने हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में रामलला को भोग लगाने की अनुमति मांगी. उनका कहना था, भगवान भूखे हैं. 1 जनवरी 1993 को कोर्ट ने रामलला के दर्शन पूजन की अनुमति दे दी. साथ ही केंद्र सरकार ने विवादित परिसर का अधिग्रहण कर लिया.

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SSI के सर्वे में मिला जमीन के अंदर हिंदू धार्मिक ढांचा

वर्ष 2002 में हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने विवादित स्थल के मालिकाना हक को लेकर दायर वाद की सुनवाई शुरू की. 5 मार्च 2003 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को विवादित स्थल की खुदाई आदेश दिया. एएसआई ने अपनी रिपोर्ट 22 अगस्त 2003 को कोर्ट को सौंपी. जिसमें बताया गया था कि जमीन के नीचे एक विशाल हिंदू धार्मिक ढांचा है. इस दौरान कोर्ट में विभिन्न मामलों की सुनवाई चलती रही. 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित स्थल को श्रीरामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को बराबर-बराबर बांटने का आदेश दे दिया. साथ ही जहां मूर्तियां रखी थी, उसे रामलला का जन्मस्थान माना. इसी बीच 21 मार्च 2027 को सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता से इस केस को सुलझाने की पेशकश दोनों पक्षों से की. लेकिन इसका हल नहीं निकला.

सुप्रीम कोर्ट ने शुरू की थी प्रतिदिन सुनवाई

6 अगस्त 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले रोज सुनवाई शुरू की. लगभग चालीस दिन तक लगातार सुनवाई करके कोर्ट ने 16 अक्तूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासक फैसले में विवादित स्थल को श्री राम जन्मभूमि का माना. साथ ही 2.77 एकड़ जमीन रामलाल विराजमान की मानी गई. निर्मोही अखाड़े और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के दावे खारिज कर दिए गए. सुप्रीम कोर्ट ने श्री राम मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने में ट्रस्ट बनाने, इसमें निर्मोही अखाड़े के एक व्यक्ति को शामिल करने की आदेश दिए. साथ ही मुस्लिम पक्ष को मस्जिद निर्माण के लिए 5 एकड़ जमीन देने के निर्देश दिए. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 5 फरवरी 2020 श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की घोषणा की गई. 5 अगस्त 2020 को राम मंदिर का शिलान्यास किया गया. 22 जनवरी 2024 को श्रीराम मंदिर ने आकार ले लिया.

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